कितना बदल गया जमाना
हॉस्पिटल में बेड पर पड़े पड़े रमा ये सोच रही थी कि सचमुच बदल गया जमाना क्योंकि अगर पहले वाला समय होता तो शायद आज वो जिंदा नहीं होती।इसी बदलते परिवेश को वो दिन रात कोसा करती थी ,बहु को तो सुनाती ही थी यहाँ तक कि अपनी पोतियों को भी नहीं छोड़ती उन पर भी तंज कसा करती थी।वैसे रमा का भरा पुरा परिवार था, बेटा बहू दोनों इंजीनियर थे ,दो होनहार पोतियाँ थीं, घर में सारी सुख सुविधायें थीं ,उसका पूरा सम्मान भी था किंतु मन से वो खुश नहीं रहती।दरअसल रमा को बहु का काम करना पसन्द नहीं था,ऊपर से बेटे बहू ने दो बेटियों के बाद फैमिली प्लानिंग कर लिया बेटे के इंतजार में नहीं रहे।उसे तो पोते की चाह थी जो पूरी नहीं हो सकती थी अतः उसके अंदर का खीज गुस्सा के रूप में निकलता।कविता रमा की बहू बहुत ही शालीन, सुशील और सुलझी हुई महिला थी, उसने घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी बहुत ही अच्छे से सम्भला था।बेटा मोहित तो ऑफिस के काम से ज्यादातर बाहर ही रहता।बच्चियां अब बड़ी हो चुकी थीं, एक का मेडिकल में एडमिशन हो गया था दूसरी भी आगे की तैयारी कर रही थी ।कविता ने दोनों को हर तरह से जिम्मेदार बनना भी सिखाया, ये सब रमा को बिलकुल अच्छा नहीं लगता वो कहती——देखो तुम दोनों ने इतनी छूट दे रखी है एक दिन जब कुछ ऊँच नीच हो जाएगा तब समझ में आएगा कि मैं ये सब क्यों कह रही हूँ!हाँ भाई जमाना बदल गया है लोग बेटी से ही वंश चलायेंगे,कुछ मुसीबत आ गया तो क्या कर लेंगी ये लड़कियां!
उनके इसी स्वभाव के कारण ही उन्हें हाई वी पी भी हो गई थी।
सभी उनका खयाल रखते पर वो अपना ख्याल नहीं रखतीं।एक दिन घर में कोई नहीं था ब्लड प्रेशर बढ़ जाने के कारण उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ ।मेड ने कविता को फोन किया किसी मीटिंग के कारण वो घर से काफी दूर थी उसने फौरन बेटी प्रज्ञा को कॉल किया, वो कोचिंग सेंटर से तुरंत वापस आई रास्ते से उसने हॉस्पिटल और एम्बुलेंस को कॉल कर दिया था ।सारी व्यवस्था समय से हो गई मम्मी के आने तक प्रज्ञा ने सब कुछ हैंडिल किया, पापा को भी सूचना दी मोहित भी आ चुका था।अब वो भी ठीक थीं, डॉक्टर की बातें उनके कान में गूँज रही थीं अगर टाइम पर इन्हें नहीं लाया जाता तो इनका बचना मुश्किल था।तभी कविता की आवाज से उनकी तन्द्रा टूटी माँ जी उठिये सूप पी लीजिए।उन्होंने सूप पिया और कविता का हाथ पकड़कर कहा तुम भी बैठो बेटा कविता अवाक थी क्योंकि कविता उनके सामने खड़ी रहती थी।मोहित ने माँ की ओर देखा तो वो हँसने लगी और बोलीं ऐसे क्यूँ देख रहा रहा है—-मैं ये समझ गई हूँ कि बदलता हुआ परिवेश अपने साथ बहुत सी अच्छाइयां भी लाता है पर हम इसे स्वीकार नहीं करते शायद बदलाव से डरते हैं।माँ की बातें सुनकर मोहित मुस्कुरा कर कविता की ओर देखा वो भी मुस्कुरा उठी।तभी प्रज्ञा भी आ गई थी और उसने हँसते हुए कहा——-जमाना कितना बदल गया?देखो तो हमारी दादी भी बदल गई और फिर ठहाकों से हॉस्पिटल का केबिन गूँज उठा।
रिम्मी वर्मा(स्व रचित)
राँची(झारखण्ड)

