एक
लाइव लाइव खेलते, देखो सब कविराज
श्रोताओं पर गिर रही, बड़ी भयंकर गाज
बड़ी भयंकर गाज, पक गए कविता सुनते
घर वाले भी यार, देख कर सिर हैं धुनते
मन तो करता यार, कि छत से मारूं डाइव
भूल के अब न यार, कभी तुम आना लाइव।
दो
पत्थर दिल कहती रहीं, लड़की मुझको यार
किडनी में मेरे मगर, पथरी निकली चार
पथरी निकली चार, सोच में हम भरमाये
दिल के पत्थर यार, यहाँ तक कैसे आये
कहे ओम कल्याण, बिठाओ मन में ना डर
टूटा दिल जब यार, बह गए होंगे पत्थर।