मानसिक स्वास्थ्य
“अरे रिद्धि बेटा! तुम ठीक तो हो? ये क्या हो गया है तुम्हें? तबियत ठीक तो है?” बबीता आंटी ने रिद्धि से पूछा।
“सब ठीक है बबीता। आजकल के बच्चों का नया फैशन हो गया है अकेले कमरे में यूंही उदास बैठे रहना।” नीलिमा ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा।
“क्या मतलब है भाभी? मैं नहीं समझी।” बबीता ने नीलिमा से पूछा।
“आजकल रिद्धि हमारी कोई बात नहीं सुनती। न बाहर की दुनिया से मतलब, न परिवार वालों से मतलब। जब देखो कमरे में उदास बैठी रहती है। भला क्या कमी की है हमने। बताओ।” नीलिमा ने मुंह बनाते हुए कहा।
“ठीक है भाभी मैं रिद्धि से बात करती हूँ।”
“ठीक है, देखो शायद तुम ही समझा सको।” नीलिमा ने अपनी बेटी रिद्धि के कमरे से बाहर निकलते हुए कहा।
नीलिमा के बाहर जाते ही रिद्धि रोने लगी।
“अरे क्या हुआ बेटा!”
“बुआ मैं साइंस लेकर नहीं पढ़ सकती। मुझे आर्ट्स में इंटरेस्ट है। पर मम्मी-पापा नहीं समझते। भइया और बड़ी दीदी साइंस में टाॅपर हैं और मुझसे भी यही उम्मीद की जाती है। पर मैं चाह कर भी अपना शत प्रतिशत नहीं दे पाती। अब तो मुझे घबराहट होने लगी है। मैं क्या करूँ। मेरी बात कोई नहीं समझता।” यह कहते हुए रिद्धि रोए जा रही थी।
“कोई बात नहीं बेटा। मैं आज ही भइया भाभी से बात करती हूँ।” यह कहते हुए बबीता अपने भइया भाभी के कमरे में जाती है।
“भइया! आप कब बदलेंगे? रिद्धि को आर्ट्स लेकर पढ़ने दीजिए। आप बिल्कुल हमारे चाचा चाची की तरह पेश आ रहे हैं। याद है न सरला चाची के बड़े बेटे ने तनाव में आकर क्या कदम उठाया था। वह डाॅक्टर बनना नहीं चाहता था तो उस पर यह थोपना सही नहीं था। यह बात तो आपने भी मानी थी। फिर आज रिद्धि पर यह दबाव क्यों? अगर वह खुश ही नहीं है तो अच्छे नंबर कहाँ से लाएगी। और अगर अच्छे नंबर आ भी गये तो भी वह खुश नहीं रह पाएगी।” बबीता ने अपने भइया से कभी इस तरह बात नहीं की थी।
बबीता की बातें सुनकर उसके भइया के आँखों के आगे सरला चाची के बेटे राहुल की तस्वीर आ गई। आज भी वह व्हीलचेयर के सहारे ही है। उसके माता-पिता ने उसे एम.बी.बी.एस कराने के चक्कर में उसकी मर्ज़ी कभी जानने और समझने की कोशिश ही नहीं की थी। उसी तनाव में आकर उसने छत से छलांग लगा दिया था। डाॅक्टरों ने उसे बचा तो लिया था पर रीढ़ की हड्डी में चोट आने की वजह से उसे लंबे समय तक व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ेगा।
बबीता ने आगे कहा,”और भाभी आप तो सबका बराबर ख्याल रखतीं हैं। कभी किसी को कोई कमी नहीं होने देती फिर रिद्धि के साथ ऐसा क्यों?”
“बबीता! मैं बराबर ही तो ध्यान दे रही हूँ तभी तो रिद्धि को भी साइंस सब्जेक्ट दिलवाया है। कल को ये तो नहीं कहेगी कि भइया-दीदी से कम आंका उसे।” नीलिमा ने सफाई देते हुए कहा।
“नहीं भाभी। बराबर ख्याल रखने का मतलब एक सी चीजें सभी को थमाना नहीं होता। बराबरी तब होती है जब हम अपनी अपनी पसंद की चीज़ में बराबर ही सम्मान पाएँ।” बबीता ने अपनी भाभी को समझाते हुए कहा।
“भाभी! रिद्धि बहुत ही तनाव में है। वह शारीरिक रूप से स्वस्थ तो है पर मानसिक रूप से बीमार होती जा रही है।”
“क्या कहना चाह रही हो? रिद्धि का दिमाग खराब है, क्या वो पागल है?”
“नहीं भाभी! मानसिक रूप से ठीक महसूस न करना भी मानसिक अस्वस्थता ही है। पागलपन ही सिर्फ मानसिक बीमारी नहीं है। और रिद्धि भी अभी मानसिक तनाव से गुजर रही है। हमें उसका साथ देना होगा। और एक बात आप और भइया भी मानसिक रूप से फिलहाल बीमार चल रहे हैं।” बबीता ने कहा।
“क्या कह रही हो तुम। हम मानसिक रूप से बीमार हैं?” बबीता के भइया ने पूछा।
“हाँ भइया! आपने ठीक सुना। आप अपनी बनाई दुनिया में इतने व्यस्त हैं कि जो आपको सही लगता है उसे बच्चों पर थोप रहे हैं। यह सही नहीं है। आप दोनों अगर अपनी बीमारी ठीक करना चाहते हैं तो सोच बदलिए। फिर देखिये कैसे सब ठीक हो जाएगा।” बबीता ने उन्हें समझाते हुए कहा।
सभी रिद्धि के कमरे में जाते हैं जहाँ रिद्धि गणित की पाठ्य पुष्तक खोलकर न जाने किस दुनिया में खोई हुई थी।
रिद्धि के पापा ने उसके हाथ से पुस्तक लेकर बंद कर दिया।
रिद्धि यह देखकर डर गई। इससे पहले वह कुछ बोलती नीलिमा ने कहा,”कल सोमवार है न! कल विद्यालय जाकर तुम्हारा आर्ट्स में एडमिशन करा आते हैं। बस एक शर्त है।”
“क्या मम्मी?” रिद्धि ने हकलाते हुए पूछा।
“यही की …. अब तुम खुश रहोगी और तनाव मुक्त भी।” नीलिमा ने रिद्धि के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
रिद्धि ने अपनी बुआ को मन ही मन धन्यवाद कहा और कई महीनों के बाद उसके चेहरे पर मुस्कान आई थी।
सभी एक दूसरे को बस देख रहे थे। कमरे में खामोशी थी।
तभी अचानक नीलिमा ने गंभीरता से पूछा,”यह सब तो ठीक है पर कोई ये तो बताओ आर्ट्स में कौन-कौन से सब्जेक्ट होते हैं?”
यह सुनकर सभी ज़ोर से हँसने लगे।
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स्वरचित–रूपा कुमारी “अनंत”
राँची, झारखंड

