
आप हिन्दी भाषा की प्रतिष्ठित कवयित्री हैं। कृपया अपनी काव्य-यात्रा के प्रारम्भिक समय के बारे में हमारे पाठकों को जानकारी दीजिए।
मैं मूल रूप से ग्वालियर मध्यप्रदेश की निवासी हूँ।मेरा जन्म और पालन पोषण ग्वालियर में हुआ। सम्पूर्ण औपचारिक शिक्षा ग्वालियर में प्राप्त की। सातवीं, आठवीं कक्षा से ही तुकबन्दियाँ करना प्रारम्भ कर दिया था।जब गजराराजा कन्या विद्यालय में नौं वी कक्षा में थी तब विद्यालय की ओर से अन्तरविद्यालयीन कविता प्रतियोगिता में भाग लेने अपने विद्यालय का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा गया।इस प्रतियोगिता में मुझे प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ।इस घटना ने कविता लिखने के लिए जबरदस्त प्रोत्साहन मिला। कॉलेज समय में जब हिन्दी एम.ए की छात्रा थी तब अनेक प्रसिद्ध कवियों की कविताओं की मौलिक धुनें बनाकर उन्हें संगीतबद्ध कर प्रस्तुत किया। ऐसा करते हुए अनायास उन कविताओं की बारीकियों से परिचित होती गयी। धुनें बनाने और संगीतबद्ध करने से संगीत की औपचारिक शिक्षा ग्रहण न करने पर भी लय,ताल,गति,यति का सूक्ष्म ज्ञान अनायास ही प्राप्त हुआ।कॉलेज समय में ही मैं स्थानीय साहित्यिक संस्थाओं की गोष्ठियों में भाग लेने लगी थी। गोष्ठियों से ही स्थानीय कवि सम्मेलनों फिर नगर के बाहर के कवि सम्मेलनों, प्रदेश स्तरीय, अखिल भारतीय और फिर अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलनों तक पहुँची।सब कुछ ईश्वर की कृपा से अनायास ही होता चला गया। यही मेरी काव्य यात्रा है।
आपने विज्ञान विषय से स्नातक करके हिन्दी भाषा में एम. ए. फिर हिन्दी में पी-एच डी की उपाधि प्राप्त की।क्या कवयित्री बनने के लिए हिन्दी में एम.ए करना आवश्यक है?
बिल्कुल नहीं। काव्य का सृजन ईश्वर का प्रसाद है। काव्य प्रतिभा ईश्वर प्रदत्त होती है।अनेक महान कवियों ने एम.ए. तो क्या किसी भी प्रकार की औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की थी। भक्ति कालीन कवि कबीरदास जी, सूरदास जी, रीतिकालीन कवियों ,और वर्तमान के भी अनेक कवियों ने हिन्दी की कोई डिग्री नहीं ली थी लेकिन उन्होंने कविताएँ ऐसी उत्कृष्ट रचीं जिन्हें समय के लम्बे अन्तराल के पश्चात भी याद किया जाता है।लेकिन प्रतिभा होने पर भी कविता रचने के लिए भाषा ज्ञान होना अति आवश्यक है। कविता के अलावा साहित्य की समस्त विधाओं की भी सामान्य जानकारी हो तो काव्य लेखन में वह सहायक ही होती है। स्नातक स्तर तक विज्ञान पढ़ने से वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित हुआ जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काम आया। ग्रेजुएशन करते हुए मैं नियमित कविताएँ रचने लगी थी। स्थानीय समाचार पत्रों में मेरी कविताएँ प्रकाशित होने लगी थीं। कविता रचने का जुनून सिर चढ़कर बोलने लगा था। तबमुझे ऐसा लगा कि हिन्दी साहित्य का सिलसिलेवार अध्ययन करना चाहिए। इसलिए मैंने हिन्दी एम.ए.में एडमिशन लिया।फिर हिन्दी नवगीत पर पी-एच.डी.की।
आप कवि सम्मेलनों की भी लोकप्रिय कवयित्री हैं।मंच पर कविता प्रस्तुत करने के लिए किन बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता होती?
बहुत अच्छा और महत्त्वपूर्ण प्रश्न किया आपने। कविता लिखना एक विद्या है और कविता को प्रस्तुत करना एक कला है।कवि सम्मेलन में कविता प्रस्तुत करने के लिए काव्य लेखन की विद्या भी आनी चाहिए और उस लिखी हुई कविता को प्रस्तुत करने की कला भी आनी चाहिए। कवि सम्मेलन दोहरी जिम्मेदारी का कार्य है। लेखन करते हुए कवि अकेला होता है,स्वान्त:सुखाय लिख सकता है केवल स्वयं के प्रति उत्तरदायी होता है। इसके उलट कवि सम्मेलन के मंच पर उसके सामने श्रोता भी होते हैं।अपने लेखन की प्रस्तुति उसे ऐसी करनी होती है कि उपस्थित श्रोताओं के हृदय पर उसकी रचना अंकित हो जाए। इसलिए कवि सम्मेलन बड़ा जोखिम वाला कार्य है। कुछ कवि कविताएँ तो उत्कृष्ट रचते हैं लेकिन उन्हें उतनी अच्छी प्रकार से प्रस्तुत नहीं कर पाते। इसलिए अच्छे कवि होते हुए भी मंच पर सफल नहीं हो पाते।
मंच पर काव्य पाठ करते समय अनेक बातों का ध्यान रखना पड़ता है। मैं क्रमवार बताती हूँ1 – वेशभूषामंच पर श्रोताओं से प्रथम परिचय रचनाकार की वेशभूषा के माध्यम से ही होता है। वेशभूषा कवियोचित,शालीन होनी चाहिए।2 – मंच पर क्रियाकलापमंच के कवि, कवयित्रियों के छोटे से छोटे कार्यकलापों पर सैकड़ों श्रोताओं की दृष्टि होती है। इसलिए मंच पर उठना, बैठना, बातचीत करना सभी कवि, कवयित्रियों की छवि निर्मित करते हैं। इसलिए मंच पर औपचारिकता और शालीनता की सीमा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।3 – रचनाओं का चुनावये सबसे महत्वपूर्ण है।अवसर के अनुरूप अपनी रचनाओं के चयन की कला मंच के कवि ,कवियित्री का सबसे बड़ा गुण है। श्रोताओं की मानसिकता की पहचान भी मंच के कवि, कवयित्री को होनी ही चाहिए।देश,काल,परिस्थिति को भाँपकर जो कवि, कवयित्री काव्य पाठ करने के लिए माइक पर आते हैं वे मंच पर सफल होते हैं।4 – मौलिकतामेरे अनुसार मौलिकता रचनाकार का सबसे महत्वपूर्ण गुण है।लेखन एवं प्रस्तुति की मौलिकता का जादू श्रोताओं के सिर पर चढ़कर बोलता है। ये डिजिटल युग है।कॉपी पेस्ट करना आसान हो गया है।सोशल मीडिया पर अनेक कवियों का रचना संसार बहुतायत रूप में बिखरा पड़ा है। अनेक नवोदित रचनाकार शीघ्र सफलता प्राप्त करने के लालच में सफल एवं लोकप्रिय कवियों के लेखन और प्रस्तुति की कॉपी करते हैं।ऐसा करने पर हो सकता है उन्हें तात्कालिक लाभ हो भी जाए लेकिन वे क्षणभंगुर लाभ के लिए अपनी चिरस्थायी मौलिकता खो देते हैं। ये बहुत घाटे का सौदा है।मौलिकता से ही कवि, कवयित्री को स्थायी लोकप्रियता, प्रतिष्ठा,यश एवं सम्मान प्राप्त होता है।5 – व्यवहारव्यवहार कुशलता सफलता का महत्वपूर्ण सूत्र है।यदि कोई कवि मंच पर बहुत जमता है लेकिन व्यवहार कुशल नहीं है तो धीरे धीरे साथी कवि,आयोजक, संयोजक एवं श्रोता उससे कटने लगते हैं। इसलिए सफलता व्यवहार कुशलता पर भी निर्भर करती है। 6 – सतत् सृजनशीलतालम्बी दूरी तय करनी है तो मंच के कवि,कवयित्री को सतत् सृजनशील रहना अति आवश्यक है। पुरानी रचनाएँ श्रोता कब तक सुनेंगे।
कीर्ति काले,श्रीमती कीर्ति काले और डॉ कीर्ति काले (अंतरराष्ट्रीय मंचो)तक की यात्रा के अनुभव को आप किस प्रकार से देखती हैं?
मेरी काव्य यात्रा कुमारी कीर्ति भागवत से प्रारम्भ हुई थी। मेरे मायके का नाम कीर्ति भागवत था।सन् 1988 में पहली बार अपने गृह नगर ग्वालियर के कवि सम्मेलन में मैंने बाकायदा आमंत्रित कवयित्री के रूप में काव्यपाठ किया।सन् 1991तक अनेक शहरों के प्रतिष्ठित अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में काव्यपाठ कर चुकी थी।सन्1994 में विवाहोपरान्त मैं दिल्ली आ गयी।अब मैं कुमारी कीर्ति भागवत से श्रीमती कीर्ति काले हो गयी।सन् 1995 में पी-एच.डी.की उपाधी प्राप्त हुई और मैं डॉ कीर्ति काले बन गयी। कुमारी कीर्ति भागवत, श्रीमती कीर्ति काले और डॉ कीर्ति काले (अन्तर्राष्ट्रीय कवयित्री )तक की यात्रा मेरे लिए अत्यन्त आनन्ददायक, संतोषप्रद एवं सुखद रही। मैंने सदैव परिश्रम को महत्त्व दिया। परिणाम को ईश्वर की अनुकम्पा पर छोड़ दिया।
जब मैंने कवि सम्मेलनों में काव्यपाठ करना प्रारम्भ किया था तब के और आज के कवि सम्मेलनों के पैटर्न में जमीन आसमान का अन्तर है।पहले तीन, चार दौर के कवि सम्मेलन होते थे। रात रात भर चलते थे।कवि को अपनी काव्य प्रतिभा के विविध आयामों को श्रोताओं के सम्मुख रखने का भरपूर समय मिलता था। पहले वो ही कवि सफल होता था जिसके पास भरपूर सामग्री होती थी।जबकि वर्तमान समय में दो ढ़ाई घण्टे के कवि सम्मेलन होते हैं। काव्य पाठ के लिए पन्द्रह बीस मिनिट एक कवि को मिलते हैं।आज पन्द्रह बीस मिनट में ही अपनी कसी हुई प्रस्तुति से श्रोताओं पर अमिट छाप छोड़ने की कठिन चुनौती कवि के सामने होती है।आज वो ही कवि सफल हो सकता है जो कम समय में शानदार प्रस्तुति देने की क्षमता रखता है।पहले कवि सम्मेलन कविता प्रधान थे,आजकल प्रस्तुति प्रधान हैं।
आप के हिसाब से कवयित्री बनने में क्या क्या चुनातियाँ आती हैं?
कवयित्री होने और कवयित्री बनने में आकाश पाताल का अन्तर है।रचनाकार तो जन्म जात होता है। लेखन का बीज जन्म से ही हृदय में स्थित होता है। अनुकूल वातावरण, यथोचित प्रोत्साहन से वह बीज पुष्पित पल्लवित हो जाता है।लेखन के अतिरिक्त उसे अन्य किसी विशेष प्रयास की आवश्यकता नहीं होती।कवयित्री बनना यानि लेखन की क्षमता न होते हुए भी धन, और लोकप्रियता के लोभ में इधर उधर की सामग्री का संकलन करके मंच पर प्रस्तुत कर देना। सफलता के लिए साम दाम दण्ड भेद अपनाकर येन-केन प्रकारेण मंच हथियाना।कवयित्रियों की यात्रा सरल नहीं है अपितु अत्यन्त कठिन है। परिवार के सहयोग के बिना कवयित्रियों के लिए लम्बे समय तक मंच पर बने रहना असम्भव है।भारतीय सामाजिक ढांचा इस प्रकार का है कि स्त्री को घर के अन्दर का दायित्व सौंपा गया है जबकि पुरुषों को घर के बाहर का।उस पर कवि सम्मेलनअधिकतर रात्री में आयोजित होते हैं । कवयित्री को रात्री के समय घर से बाहर रहने की इजाजत परिवार की ओर से मिलना कठिन होता है।कवि सम्मेलन एक टूरिंग जॉब है।यात्राएँ बहुत करनी पड़ती हैं इसमें भी महिलाओं को कठिनाई का सामना करना पड़ता है।कवि सम्मेलनों का पैटर्न ही ऐसा बन गया है कि पूरे मंच पर एक या कभी कभी दो कवयित्रियाँ आमंत्रित होती हैं।बाकी सारे पुरुष कवि होते हैं। ये भी कठिनाई का कारण है।मौलिक कवयित्रियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो प्रायोजित और बनायी गयी कवयित्रियाँ हैं।लेकिन आत्म संयम, शालीनता के साथ काव्य लेखन और प्रस्तुति पर गहरी पकड़ हो तो कठिन राह भी सरल हो जाती है।
आप आज की नवोदित कवयित्रियों को क्या संदेश देना चाहेंगी?
आज की पीढ़ी बहुत बुद्धिमान एवं प्रतिभाशाली है।इस पीढ़ी की क्षमताएँ अनन्त हैं। लेकिन क्षमताओं के साथ में लालसाएँ भी अनन्त हैं।लालसाओं की पूर्ति की दिशा में बढ़ने की गति तो अचम्भित कर देने वाली है। नवोदित कवयित्रियों से बस एक ही बात कहना चाहूँगी कि मौलिक रहें, धैर्यवान रहें, शालीन रहें।सतत् लिखें और सतत् दिखें।मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।