अंतरराष्ट्रीय कवयित्री डॉ कीर्ति काले की नई पुस्तक- फरफंदों
हिंदी भाषा के गद्य लेखन का रसमय प्रस्तुतिकरण है – फरफंदों
किसी भी इंसान को यदि समझना चाहो तो हम सबसे पहले उस से नाता जोड़ते हैं मिलते-जुलते हैं उसके बारे में उसके परिवार के बारे में, उसकी रुचियां उसके अतीत उसकी उसकी महत्वाकांक्षाएं जानते हैं। कुल मिलाकर यूं कहिए कि एक व्यक्ति के पूरे व्यक्तित्व को यदि जानना चाहे तो फरफंदों संस्मरण एक ऐसा उदाहरण है जो कीर्ति मैम के व्यक्तित्व का आधार है। इस पुस्तक में कीर्ति मैम ने अपना बचपन, बाल सुलभ बुद्धि की सोच ,पारिवारिक संबंध, उस समय का सामाजिक जीवन, बचपन के खेल, शरारतें,भोलापन अल्हड़पन इन सब को इतना सुंदर वर्णित किया है कि पाठक अन्यत्र ही अपने बचपन की भूली बिसरी यादों में खो जाता है ।
आकाशवाणी, कलई खुल गई ,बंदरोबा इनमें कितनी प्यारी बाल सुलभ बुद्धि थी जो कहा गया वह मान लिया माना ही नहीं अपना भी लिया ।बिन पैसे के खेलों का आनंद, महाराज सिंह की गौशाला- एक जीत जैसे किसी राज्य का सेनापति युद्ध में हराए हुए राज्य की धनसंपदा थाल में सजाकर सिंहासन पर विराजमान अपने राजा को ससम्मान भेंट करता है । घर में बाल- रामलीला का मंचन ,सखुदाई का सुख ,घर की कामवाली बाई ,बाई से बहुबाई और फिर उसकी बहू का रूप चित्रण एवं सामाजिक परिवर्तन। छुआछूत के उस जमाने में बहु बाई को पानी पिलाना अपना सौभाग्य समझना उसके द्वारा ओक से पानी पीने का प्रशिक्षण पाकर बहू भाई को गुरु मानना। ऐसा कौन कर सकता है ।
फिर धीरे-धीरे किशोरावस्था में प्रवेश करती हुई किशोरी के मन की उथल-पुथल एक नया भीतर का संसार, अठखेलियां ,फ्रॉक से सलवार कुर्ता ।जब स्वयं किशोरी की मां बनी तो अपनी मां के पक्ष को भी समझा ।दे दना दन, पहली विदेश यात्रा , संजू मौसी की यादों का वीडियो, सिनेमा दर्शन, कलई के रूप में मामा की पोल का खुलना आदि बहुत ही सुंदर संस्मरण है।
गणपति बप्पा मोरया ,नागपंचमी का मेला, दीपावली तब की, आषाढ़ी एकादशी में परम्पराओं एवम त्योहारों का सुखद वर्णन है। आनंद को भावभीनी श्रद्धांजलि ,शिक्षकों के प्रति समर्पण एवं कृतज्ञता का भाव ,आक थू- एक सामाजिक बुराई के प्रति घृणाभाव, लक्ष्मी को रोटी बनाते हुए याद करना, शेरू एक सामाजिक प्राणी के प्रति उदारता दर्शाता हुआ यह संस्मरण कीर्ति जी को एक रेशमी स्वप्न के रूप में स्वीट सिक्सटीन की ओर ले जाता है। विपदा के समय मे ईश्वर पर पूर्ण विश्वास,मायके का एहसास, पहली हवाई यात्रा में किस प्रकार हवाइयां उड़ी।
30 घंटे की ट्रेन के बाद चार आंखों का लगातार बरसते हुए पुनर्मिलन। नन्ही सहयात्री प्रज्ञा की सीख, होम डिलीवरी का सार्थक अर्थ एवम कुछ हास्यस्पद एवं शिक्षाप्रद संस्मरण-नन्हीदेवियां ,ओफ्फोह ,योग के प्रति सजगता, सुलभ के सुभीते के प्रति आभार और चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार किया है कीर्ति जी ने ।
अंत में ईमानदारी अभी जिंदा है और एक फैसला ऐसा भी- एक नई सोच की तरफ इशारा करती है फरफंदों।
फरफंदों अपने माता-पिता को तो समर्पित है ही इसके साथ ही पाठकों का मन मोह लेने वाली बालिका, किशोरी ,नवविवाहिता और मां का सफर तय करती हुई फरफंदों सबके जीवन के हर पहलू को छूकर गुजरती है।
पाठक ये पुस्तक जितनी बार पढ़ेंगे, उतनी बार आनंदित एवम भाव विभोर हुए बिना नहीं रह सकेंगे।
सुनीला नारंग
14 जनवरी,2023
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