वरिष्ठ साहित्यकार श्री ईश कुमार गंगानिया का आत्मवृत “मैं और मेरा गिरेबां” – नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत

25 अक्तूबर सन 1956 में जन्में ईश कुमार गंगानिया दिल्ली प्रशासन से उप-प्रधानाचार्य के पद से सेवा निवृत्त हैं। आपकी अलग-अलग विधाओं में अब तक दो दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सूचनार्थ आपकी इक्कीस पुस्तकें हिन्दी में और तीन पुस्तकें अंग्रेजी में हैं। इनमें सात काव्य संग्रह, एक ग़ज़ल संग्रह ‘गर्दो-गुबार’, एक कहानी-संग्रह ‘इंट्यूशन’, एक उपन्यास ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ और दो पुस्तकें देश के मूल निवासियों के अस्मिता संघर्ष पर आधारित हैं। एक पुस्तक ‘अन्ना आंदोलन: भारतीय लोकतंत्र को चुनौती’, शेष आठ पुस्तकें साहित्यिक आलोचना और समकालीन मुद्दों पर लिखे गए निबंधों का संग्रह हैं। Surgical Strike (Novel), Synthetic Eggs (Collection of Stories) and Bard’s Beloved (English Poetry)। ये तीन पुस्तकें अंग्रेजी में प्रकाशित हैं। ‘हिटलर के पर्याय हैं जो’ व ‘भगत सिंह के देश में’ आपके नवीनतम सातवें व आठवें प्रकाशित काव्य संग्रह हैं। इनका नवां काव्य संग्रह ‘इश्तिहार’ इनकी खुद की रिव्यू-प्रक्रिया के आधीन है शीघ्र ही प्रकाशित होगा। इनकी पच्चीसवीं पुस्तक ‘मैं और मेरा गिरेबां’ आत्मवृत है। आप अपने सेवाकाल में ही आठ वर्षों से भी अधिक समय तक आलोचना की लोकप्रिय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका ‘अपेक्षा‘ के उप-संपादक रहे हैं। ये ‘आजीवक विजन‘ नामक द्विभाषीक मासिक पत्रिका के संपादक रहे और इन्होंने ‘अधिकार दर्पण’ यानी मानवाधिकार के मसलों से जुड़ी पत्रिका में उप-संपादक के रूप में आठ वर्ष काम किया। ‘अपेक्षा’ के पुनर्प्रकाशन के नए दौर में ‘अपेक्षा’ के संपादक मंडल की ओर से वर्तमान में इन्हें ‘संपादक’ की नई जिम्मेदारी से नवाजा है।
आपका प्रथम उपन्यास ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ और कहानी-संग्रह ‘इंट्यूशन‘ के ऑडियो कुकू एफएम रेडियो के माध्यम से प्रसारित हो चुके हैं। और कुकू एफएम पर उपलब्ध हैं। वरिष्ठ लेखक श्री ईश कुमार गंगानिया जी सेवानिवृत्त होकर इन दिनों स्वतंत्र रूप से लेखन में व्यस्त हैं।
हाल ही में प्रकाशित हुई उनकी पुस्तक “मैं और मेरा गिरेबां” उनकी आत्मकथा यानी आत्मवृत्त है जिसमें उन्होंने अपने जीवन से जुड़े सभी पहलुओं को पाठकों के समक्ष बखूबी प्रस्तुत किया है । लेखक द्वारा बेहद प्रभावी भाषाशैली का प्रयोग देखते ही बनता है। उनका मानना है की सबके जीवन में कुछ न कुछ ऐसा होता है जिससे आत्मसात कर सीखा जा सके। लेखक अपनी इस पुस्तक में कहते हैं की –
“हम भी प्रकृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसमें पेड़-पौधे, जीव-जंतु,नदी-नाले-समुद्र, जंगली व पालतू जानवर, चांद-सितारे, सूरज, धरती-आकाश और न जाने क्या-क्या है जो हमें कुछ न कुछ सीखने की प्रेरणा देते हैं। मुझे लगा कि हां, मेरे जीवन में भी कुछ ऐसा हो सकता है शायद, जो किसी के कुछ सीखने के काम आए। मेरी खामियों से भी तो कोई कुछ न कुछ सीखा जा सकता है। इसकी दूसरी प्रबल वजह यह भी है कि मेरे परिवार और मेरी आने वाली पीढ़ियों को भी मेरे जीवन, मेरे परिवेश और परिस्थितियों को जानना चाहिए। बहुत संभव है यह उनका किसी न किसी रूप में मार्गदर्शन करे।
वें बताते हैं की – अपने कन्फेशन की इस कड़ी में इतना और जोड़ना चाहता हूं कि मेरा जीवन अक्सर धूप छांव, आंधी तूफान लिए रहा है। इनमें कुछ रातें बहुत अंधियारी रही तो कुछ रातें बहुत लम्बी व अंधियारी भी रही हैं लेकिन बेशक हर रात के बाद एक सुहाना सवेरा हमेशा रहा है। इस सवेरे ने रातों के दर्द के मामले में एक बाम का काम किया है। मैंने जीवन के अंधियारों को अपना आशियां नहीं बनाने दिया। इस सवेरे का मैंने भी भरपूर उपयोग किया। मैंने अपने जीवन की नई पगडंडी तैयार की, इसपर निरंतर चलता गया और अभी चल रहा हूं।”
आदरणीय श्री ईश कुमार गंगानिया जी अपने आप में जीती जागती मिसाल हैं, वें सच्चे साहित्य साधक हैं उन्होंने लेखन में सक्रिय योगदान देते हुए नए कीर्तिमान घड़े। यदि आप भी उनकी इस पुस्तक से रूबरू होना चाहते हैं तो यह पुस्तक सभी ई-कॉमर्स वेबसाइट जैसे ऐमेज़ॉन फ्लिपकार्ट इत्यादि पर उपलब्ध है और आप इसे एकेडमिक प्रकाशन से भी ऑर्डर किया जा सकता है।
नि:संदेह इस पुस्तक में बहुत से ऐसे पहलू लेखक द्वारा उल्लेख किए गए हैं जिनसे आने वाली नई पीढ़ियों को प्रेरणा अवश्य प्राप्त होगी। श्री ईश कुमार गंगानिया जी को हार्दिक शुभकामनाएं ।
