
लघुकथा
शिक्षा
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“मैं स्कूल नहीं जाऊँगी।”… बेटी ने लाजवंती से कहा। लाजवंती का सर्वांग कांप उठा। उसे प्रतीत हुआ जैसे पंद्रह साल पुरानी लाजवंती बोल रही है। सारी उम्र अनपढ़ता का दंश सहने वाली उसकी माँ उसे शिक्षा का प्रकाश देना चाहती थी। लेकिन लाजवंती को पढ़ाई में बिल्कुल ही मन नहीं लगता था । उसके पिता और दादी ने भी उसका समर्थन किया । उनकी नजर में लड़कियों को गृह- कार्य में दक्ष होना ही सुखी परिवारिक जीवन के लिए पर्याप्त था । शादी के दो साल बाद ही लाजवंती के पति का सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया।तब उसके देवर ने बैंक के कागजात पर उसके अंगूठे की छाप लगवा कर उसका पूरा पैसा हड़प लिया । अनपढ़ लाजवंती गोद में अपनी बेटी को लिए दर-दर ठोकरें खाते रही। फिर बड़ी मेहनत से उसने टिफिन पहुँचाने का कारोबार शुरू किया । धंधे में होशियार रहने के बावजूद ,अनपढ़ होने की वजह से उसके कर्मचारी पैसे का गोलमाल कर ही लेते थे।
” बिना पढ़ाई के भी मैं तुम्हारी मदद कर रही हूँ ना। इस धंधे के लिए पढ़ाई की क्या आवश्यकता है ?”…बेटी बोली ।
“किसी भी धंधे को चलाने के लिए शिक्षित होना आवश्यक है।नहीं तो कोई तुम्हें बेवकूफ बना सकता है। शिक्षा तो वह प्रकाश है जिसमें जिंदगी की राहें स्पष्ट दिखती है। शिक्षा से तुम अपना ही नहीं, अपने परिवार और समाज को समाज को भी सही राह प्रशस्त कर सकती हो।”… लाजवंती के चेहरे से दृढ़ता स्पष्ट झलक रही थी ।
रंजना वर्मा उन्मुक्त
स्वरचित