कान्हा को पाती- भावों के आवेगो को कैसे तुम तक पहुँचाऊँ मुरली वाले हे! लीलाधर क्या मैं तुम्हे बताऊँ आखें मूंदती हूँ तो प्रभु उर में मचे हलचल और खोलूं जो आखें हलचल में खो जाऊँ। कुछ दुःख ऐसे प्रभु जो असहनीय है सारे तुम तो जानते हो दीनानाथ क्या […]
कान्हा को पाती- भावों के आवेगो को कैसे तुम तक पहुँचाऊँ मुरली वाले हे! लीलाधर क्या मैं तुम्हे बताऊँ आखें मूंदती हूँ तो प्रभु उर में मचे हलचल और खोलूं जो आखें हलचल में खो जाऊँ। कुछ दुःख ऐसे प्रभु जो असहनीय है सारे तुम तो जानते हो दीनानाथ क्या […]