सौ प्रतिशत सत्य है यह, न केवल अपने मन को भरमाने के लिए अपितु, दिमाग को पाजिटिव रखने के लिए भी। अरे भई! हम सब तो यह मानते हैं न कि देर है पर अँधेर नहीं। देखा नहीं है हिन्दी फिल्मों में हीरो-हीरोइन कैसे पूरी फिल्म मार खाते, कष्ट सहते संघर्ष करते रहते हैं इस आस में कि अंततः सच्चाई की ही जीत होगी और होती भी है।
हाँ फिल्मों में इतना तो निश्चित रहता है कि ढाई-तीन घंटे में सत्य की जीत हो जाएगी और हीरो-हीरोइन सुख से राज करेंगे, किंतु हिन्दी के संदर्भ में नौ मन तेल जुटाने की कवायद जब तक पूरी नहीं होगी, राधा कैसे नाचेगी! इसमें कोई शको-सुबहा नहीं कि हिन्दी रानी है और उसे राज करना ही है। इसके लिए हिन्दी के वरिष्ठ से लेकर कनिष्ठ साहित्यकार सभी जोर-शोर से हिन्दी-पखवाड़ा मनाते और हिन्दी के पक्ष में नारे लगाते भी खूब दिखते हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि कुछ ऐसे जुमले आपके कानों में भी शहद घोल रहे होंगे…
“We want hindi…
We should speak in hindi…”
अब ऐसे में हिन्दी रानी को राज करने से भला कौन रोक सकता है, भले ही कितनी सदियाँ गुजर जाएँ…!
— गीता चौबे गूँज
